बॉलीवुड में जासूसी (Spy Thriller) फिल्मों की परंपरा नई नहीं है। लेकिन ज्यादातर फिल्मों में या तो कहानी बेहद काल्पनिक लगती है या फिर देशभक्ति को जरूरत से ज्यादा परोसा जाता है। ऐसे में निर्देशक अरुण गोपालन की फिल्म Tehran एक अलग कोशिश है। यह फिल्म न सिर्फ दर्शकों को रोमांचक एक्शन दिखाती है, बल्कि असल अंतरराष्ट्रीय राजनीति और जासूसी की दुनिया को भी करीब से पेश करती है।
कहानी: हकीकत के करीब
फिल्म की कहानी ईरान की राजधानी तेहरान की पृष्ठभूमि पर आधारित है। यहां राजनीतिक हलचल, विरोध प्रदर्शन और खुफिया एजेंसियों का खेल अपने चरम पर है। इसी बीच भारत भी इस पूरी साज़िश में फंसता है और उसे अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी होती है।
जॉन अब्राहम फिल्म में रविंद्र कौल, एक भारतीय RAW अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें ऐसा मिशन सौंपा जाता है जिस पर न सिर्फ भारत की सुरक्षा बल्कि वैश्विक राजनीति का संतुलन भी टिका है। कहानी में अमेरिका-ईरान तनाव, इस्राइल की दखलअंदाजी और हालिया ऐतिहासिक घटनाओं के संदर्भ देखने को मिलते हैं, जो इसे वास्तविकता से जोड़ते हैं।
अभिनय: जॉन अब्राहम का दमदार अंदाज़
जॉन अब्राहम ने पिछले कुछ सालों में मद्रास कैफ़े, परमाणु और बाटला हाउस जैसी फिल्मों से अपनी छवि एक सीरियस एक्टर और देशभक्ति पर आधारित फिल्मों के नायक के रूप में बनाई है। Tehran में उनका प्रदर्शन काफी परिपक्व और नियंत्रित नजर आता है। उनका किरदार बड़े-बड़े डायलॉग्स से नहीं, बल्कि अपने चेहरे के भाव और शारीरिक भाषा से असर छोड़ता है।
मानुषी छिल्लर फिल्म में अंडरकवर एजेंट की भूमिका निभा रही हैं। यह उनके करियर का नया और साहसिक कदम है। वह खूबसूरत दिखने के साथ-साथ किरदार की मजबूती भी दिखाती हैं। जॉन और मानुषी की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री कहानी को भावनात्मक गहराई देती है।
सपोर्टिंग कास्ट में ईरानी और इस्राइली कलाकारों का काम भी फिल्म को असली अंदाज़ देता है।
निर्देशन और स्क्रीनप्ले
निर्देशक अरुण गोपालन ने साहस दिखाया है कि उन्होंने वास्तविक राजनीतिक घटनाओं को सीधे तौर पर फिल्म की कहानी में पिरोया है। पहले हाफ में फिल्म काफी तेज़ रफ्तार लगती है और दर्शक कहानी में खिंच जाते हैं। हालांकि दूसरा हिस्सा थोड़ा धीमा पड़ता है, जहां ज्यादा राजनीतिक संवाद कहानी की गति को रोकते हैं।
फिर भी क्लाइमैक्स तक आते-आते फिल्म दोबारा पकड़ बनाती है और दर्शकों को बांधे रखती है।
एक्शन और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण इसके यथार्थवादी एक्शन सीक्वेंस हैं। न तो यहां हवा में उड़ते हुए स्टंट हैं और न ही अविश्वसनीय लड़ाई के दृश्य। बल्कि गलियों में पीछा, बाजारों में शूटआउट और नज़दीकी कॉम्बैट को इस तरह दिखाया गया है कि यह असली लगे।
कैमरा वर्क शानदार है। तेहरान की तंग गलियां, अंधेरी लोकेशन और हलचल भरे बाजार दर्शकों को उसी माहौल में ले जाते हैं।
संगीत और बैकग्राउंड स्कोर
फिल्म में पारंपरिक गाने कम हैं, लेकिन बैकग्राउंड स्कोर मजबूत है। इसमें मिडिल ईस्टर्न धुनों और इलेक्ट्रॉनिक बीट्स का मिश्रण है, जो हर रोमांचक सीन में तनाव को और गहरा कर देता है।
खास बातें और कमजोरियां
मजबूत पक्ष
- जॉन अब्राहम का नियंत्रित और दमदार अभिनय।
- यथार्थवादी एक्शन, जो बनावटी नहीं लगता।
- असली घटनाओं पर आधारित कहानी।
- अंतरराष्ट्रीय कलाकारों की मौजूदगी से असली माहौल।
कमजोर पक्ष
- दूसरा हाफ थोड़ा खिंचता हुआ लगता है।
- कुछ सहायक किरदारों को पर्याप्त गहराई नहीं मिल पाती।
- आम दर्शकों के लिए जटिल राजनीतिक संदर्भ समझना मुश्किल हो सकता है।
निष्कर्ष
Tehran बॉलीवुड के पारंपरिक मसाला एंटरटेनर से अलग है। यह एक ऐसा स्पाई थ्रिलर है, जो रोमांच और राजनीति दोनों को एक साथ प्रस्तुत करता है। जॉन अब्राहम का गंभीर अभिनय, यथार्थवादी एक्शन और असली राजनीतिक घटनाओं की पृष्ठभूमि इसे खास बनाते हैं।
अगर आपको इंटेलिजेंट थ्रिलर फिल्में पसंद हैं, तो Tehran ज़रूर देखी जानी चाहिए। यह फिल्म दिखाती है कि जासूस की ज़िंदगी सिर्फ रोमांचक ही नहीं, बल्कि बेहद मुश्किल और बलिदान से भरी होती है।
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